Skip to main content

Posts

Showing posts from July, 2017

बलात्कार से बड़ा कोई ज़ुर्म नहीं है धरती पर..

बलात्कार से बड़ा कोई ज़ुर्म नहीं है धरती पर.. 🖋 कुंदन सिंह कनिष्क टांगो के बीच से जन्म लेने के बाद वक्षस्थल से अपनी प्यास और भूख मिटाने वाला इंसान, बड़ा होते ही औरतों से इन्ही दो अंगों की चाहत रखता है!!!!! और इसी चाहत में बीभत्स तरीकों को इख्तियार करता है.......जैसे बलात्कार और फिर हत्या.....? या एसिड अटैक .......?? ये कैसी चाहत है औरत से...??? जननी वर्ग के साथ इस तरह की धिनौनी  मानसिकता..?? का वध होना चाहिए ।।।। ऐसी कुत्सित मानसिकता वालें लोगों का.....सचमुच वध होना चाहिए ।। बलात्कार से बड़ा कोई ज़ुर्म नहीं है धरती पर.. ...... विचार करें दोस्तों .........           *******युवा सोच******

जीएसटी - जनता की जेब से आखिरी कौड़ी भी छीन लेने पर आमादा पूँजीपतियों की नई चाल

जीएसटी - जनता की जेब से आखिरी कौड़ी भी छीन लेने पर आमादा पूँजीपतियों की नई चाल जीएसटी पर बहुत सारे लोग इस बात की आलोचना कर रहे हैं कि यह बगैर तैयारी के लागू की जा रही है| तो माना जाय पूरी तैयारी से लागू होने पर इसे जनता के हित में मानकर इसका स्वागत किया जाता? नोटबंदी के वक़्त भी मैंने इस क़िस्म की आलोचना पर सवाल उठाया था|इस क़िस्म की आलोचना एक समान हितों वाले वर्ग रहित समाज में ही की जा सकती है| मौज़ूदा वर्ग विभाजित, ग़ैरबराबरी और शोषण पर आधारित समाज में प्रत्येक नीति का विभिन्न वर्गों पर असर समझे बग़ैर चर्चा बेमतलब है| इस दृष्टिकोण से कुछ अहम् बिंदु: 1. पूँजीवादी जनवाद के दृष्टिकोण से भी अप्रत्यक्ष करों के दायरे को बढ़ाना एक प्रतिगामी कदम है क्योंकि इनकी दर सभी के लिए 'समान' होने से आमदनी के हिस्से के तौर देखें तो जितनी कम आमदनी हो उसका उतना बड़ा हिस्सा कर में देना पड़ता है और जितनी ज्यादा आमदनी उतना कम हिस्सा| जहाँ पूँजीवाद अपने प्रगतिशील दौर में स्थापित हुआ था उन तुलनात्मक विकसित देशों में कुल करों का 2 तिहाई प्रत्यक्ष करों और एक तिहाई अप्रत्यक्ष करों से वसूल किया जाता है| भ