Skip to main content

Posts

Showing posts from 2017

बलात्कार से बड़ा कोई ज़ुर्म नहीं है धरती पर..

बलात्कार से बड़ा कोई ज़ुर्म नहीं है धरती पर.. 🖋 कुंदन सिंह कनिष्क टांगो के बीच से जन्म लेने के बाद वक्षस्थल से अपनी प्यास और भूख मिटाने वाला इंसान, बड़ा होते ही औरतों से इन्ही दो अंगों की चाहत रखता है!!!!! और इसी चाहत में बीभत्स तरीकों को इख्तियार करता है.......जैसे बलात्कार और फिर हत्या.....? या एसिड अटैक .......?? ये कैसी चाहत है औरत से...??? जननी वर्ग के साथ इस तरह की धिनौनी  मानसिकता..?? का वध होना चाहिए ।।।। ऐसी कुत्सित मानसिकता वालें लोगों का.....सचमुच वध होना चाहिए ।। बलात्कार से बड़ा कोई ज़ुर्म नहीं है धरती पर.. ...... विचार करें दोस्तों .........           *******युवा सोच******

जीएसटी - जनता की जेब से आखिरी कौड़ी भी छीन लेने पर आमादा पूँजीपतियों की नई चाल

जीएसटी - जनता की जेब से आखिरी कौड़ी भी छीन लेने पर आमादा पूँजीपतियों की नई चाल जीएसटी पर बहुत सारे लोग इस बात की आलोचना कर रहे हैं कि यह बगैर तैयारी के लागू की जा रही है| तो माना जाय पूरी तैयारी से लागू होने पर इसे जनता के हित में मानकर इसका स्वागत किया जाता? नोटबंदी के वक़्त भी मैंने इस क़िस्म की आलोचना पर सवाल उठाया था|इस क़िस्म की आलोचना एक समान हितों वाले वर्ग रहित समाज में ही की जा सकती है| मौज़ूदा वर्ग विभाजित, ग़ैरबराबरी और शोषण पर आधारित समाज में प्रत्येक नीति का विभिन्न वर्गों पर असर समझे बग़ैर चर्चा बेमतलब है| इस दृष्टिकोण से कुछ अहम् बिंदु: 1. पूँजीवादी जनवाद के दृष्टिकोण से भी अप्रत्यक्ष करों के दायरे को बढ़ाना एक प्रतिगामी कदम है क्योंकि इनकी दर सभी के लिए 'समान' होने से आमदनी के हिस्से के तौर देखें तो जितनी कम आमदनी हो उसका उतना बड़ा हिस्सा कर में देना पड़ता है और जितनी ज्यादा आमदनी उतना कम हिस्सा| जहाँ पूँजीवाद अपने प्रगतिशील दौर में स्थापित हुआ था उन तुलनात्मक विकसित देशों में कुल करों का 2 तिहाई प्रत्यक्ष करों और एक तिहाई अप्रत्यक्ष करों से वसूल किया जाता है| भ

मध्यप्रदेश में 5 किसानों की हत्या के विरोध में

मध्यप्रदेश में 5 किसानों की हत्या के विरोध में बर्तोल्त ब्रेख्त की एक प्रासंगिक कविता - आठ हजार गरीब लोगों का नगर के बाहर इकट्ठा होना 🖋 कुंदन सिंह कनिष्क आठ हजार से अधिक बेरोजगार खानकर्मी, अपने बीवी-बच्‍चों समेत बुडापेस्‍ट के बाहर साल्‍गोटार्जन रोड पर जामा हो रहे हैं। उन्‍होंने अपने अभियान में पहली दो रातें बिना कुछ खाये-पिये ही गुजार दी है। उनके शरीर पर बेहद नाकाफी जीर्ण-शीर्ण कपड़े हैं। देखने में वे बस हड्डियों के ढांचे ही भर हैं। अगर वे खाना और काम पाने में नाकाम रहे,  तो उन्‍होंने कसम खा रखी है कि वे बुडापेस्‍ट पर धावा बोल देंगे, भले ही इससे खून-खराबा ही क्‍यों न शुरू हो जाये, उनके पास अब खोने के लिए कुछ भी नहीं बचा है। बुडापेस्‍ट क्षेत्र में सैनिक बल तैनात कर दिये गये हैं, तथा उन्‍हें सख्‍त आदेश दे दिये गये हैं कि अगर लेशमात्र भी शांति भंग तो वे अपने आग्‍नेयास्‍त्र इस्‍तेमाल करें।’ ........................................ हम जा पहुँचे सबसे बड़े शहर में हममें से 1000 भूख से पीड़ि‍त थे 1000 के पास खाने को कुछ नहीं था 1000 को खाना चाहिए था। जनरल ने अपनी खिड़की से देखा

हमारी इंडियन आर्मी

युवा सोच आज भीम आर्मी बनी कल पटेल आर्मी बनिया आर्मी ब्राह्मण आर्मी ठाकुर आर्मी तेली आर्मी कायस्थ आर्मी  अरे मूर्खो फिर हमारी इंडियन आर्मी क्या करेगी?

Kundan singh kanishk (युवा सोच): धार्मिक बँटवारे की साज़िशों को नाकाम करो! पूँजीवादी लूट के ख़िलाफ़ एकता क़ायम करो!

Kundan singh kanishk (युवा सोच): धार्मिक बँटवारे की साज़िशों को नाकाम करो! पूँजीवादी लूट के ख़िलाफ़ एकता क़ायम करो!

धार्मिक बँटवारे की साज़िशों को नाकाम करो! पूँजीवादी लूट के ख़िलाफ़ एकता क़ायम करो!

युवा सोच 🖋 Kundan Singh Kanishk धार्मिक बँटवारे की साज़िशों को नाकाम करो! पूँजीवादी लूट के ख़िलाफ़ एकता क़ायम करो! 👉 *धर्म और फासीवाद के बारे में कुछ उद्धरण* 🔶जब तक लोग अपनी स्वतंत्रता का इस्तेमाल करने की ज़हमत नहीं उठायेंगे, तब तक तानाशाहों का राज चलता रहेगा; क्योंकि तानाशाह सक्रिय और जोशीले होते हैं, और वे नींद में डूबे हुए लोगों को ज़ंजीरों में जकड़ने के लिए, ईश्वर, धर्म या किसी भी दूसरी चीज़ का सहारा लेने में नहीं हिचकेंगे। 🖊 फ्रांसीसी क्रान्ति की वैचारिक नींव तैयार करने वाले महान दार्शनिकों में से एक – वोल्तेयर 🔶एक तरफ जहाँ जन आन्दोलन और राष्ट्रीय आन्दोलन हुए, वहीं, उनके साथ-साथ जातिगत और साम्प्रदायिक आन्दोलनों को भी जान-बूझकर शुरू किया गया क्योंकि ये आन्दोलन न तो अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ थे, न किसी वर्ग के, बल्कि ये दूसरी जातियों के ख़िलाफ़ थे। 🖊 साम्प्रदायिक जुनून का मुकाबला करते हुए शहीद होने वाले महान राष्ट्रवादी पत्रकार गणेशशंकर विद्यार्थी 🔶प्रतिक्रियावादी बुर्जुआ वर्ग ने अपने आप को हर जगह धार्मिक झगड़ों को उभाड़ने के दुष्कृत्यों में संलग्न किया है, और वह र

अर्थव्यवस्था चकाचक है तो लाखों इंजीनियर नौकरी से निकाले क्यों जा रहे हैं?

युवा सोच अर्थव्यवस्था चकाचक है तो लाखों इंजीनियर नौकरी से निकाले क्यों जा रहे हैं? 🖋Kundan Singh kanishk नरेन्द्र मोदी विकास के बड़े-बड़े दावे करते हुए सत्ता में आये थे। देश को ऐसी विकास यात्रा पर ले चलने के सपने दिखाये गये थे जिसमें करोड़ों रोज़गार पैदा होंगे। मगर पिछले 3 साल में गौरक्षक दलों, लम्पट वाहिनियों और स्वयंभू एंटी-रोमियो दस्तों ‍आदि के अलावा नये रोज़गार कहीं पैदा होते नहीं दिख रहे हैं। उल्टे , आईटी जैसे जिन क्षेत्रों के लोग अपने को बहुत सुरक्षित और देश के बाकी अवाम से चार हाथ ऊपर समझते थे, उनके ऊपर भी गाज गिरनी शुरू हो गयी है। पिछले कुछ महीनों में देश की सबसे बड़ी 7 आईटी कम्पनियों से हज़ारों इंजीनियरों और मैनेजरों को निकाला जा चुका है। प्रसिद्ध मैनेजमेंट कन्सल्टेंट कम्पनी मैकिन्सी ‍की रिपोर्ट के अनुसार अगले 3 सालों में हर साल देश के 2 लाख साफ्टवेयर इंजीनियरों को नौकरी से निकाला जायेगा। यानी 3 साल में 6 लाख। ऐसा भी नहीं है कि केवल आईटी कम्पनियों से ही लोग निकाले जा रहे हैं। सबसे बड़ी इंजीनियरिंग कम्पनियों में से एक लार्सेन एंड टुब्रो (एल एंड टी) ने भी पिछले महीन

मोदी सरकार की शिक्षा और स्‍वास्‍थ्‍य पर भी सेवा शुल्‍क लगाने की साजिश को समझें

युवा सोच मोदी सरकार की शिक्षा और स्‍वास्‍थ्‍य पर भी सेवा शुल्‍क लगाने की साजिश को समझें 🖊 Kundan Singh Kanishk जीएसटी लागु होने की खबरों के बीच ये प्रचार जोरों पर है कि श्रीनगर के सुहावने मौसम में चप्पे-चप्पे पर सुरक्षा के बीच दक्षिणपंथी, वामपंथी, सेकुलर, ईमानदार, आदि सारे शासकों ने मिलकर आम राय से जनता पर भारी कृपा की और शिक्षा और इलाज पर जीएसटी की दर 0% रखी| लेकिन यह कोई नहीं बता रहा है कि पहली बार यह 0% दर का फैसला करने की जरुरत ही क्यों पड़ी? असल बात यह है कि शिक्षा और इलाज के लिए दिये जाने वाले शुल्क को अब पहली बार सेवा कर के दायरे में लिया गया है जिससे इस पर टैक्स लगाया जा सके| बस एक ही बार में झटका न लगे इसलिए अभी टैक्स की दर 0% रखी गई है लेकिन टैक्स लगाने का क़ानूनी इंतजाम हो गया है, आगे से इस पर कभी भी टैक्स की दर बढ़ाई जा सकेगी, बगैर क़ानून में परिवर्तन किये| ध्यान रहे यह टैक्स संस्थानों के मुनाफे पर नहीं, ग्राहक अर्थात छात्रों/मरीजों द्वारा दिए जाने वाले शुल्क पर होगा, अर्थात उस शुल्क में जुड़ जायेगा| ग़रीब तो जैसे-तैसे सरकारी स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने या उसमें भ

कार्ल मार्क्‍स का पत्र

युवा सोच कार्ल मार्क्‍स का पत्र - अपनी जीवनसाथी जेनी के नाम जो ज़िंदगी और अपने लक्ष्य के प्रति सच्चे और एकनिष्ठ होते हैं , जिनका जीवन मानव-मुक्ति के मार्ग-संधान और परियोजना को सच्चे अर्थों में समर्पित होता है , निजी ज़िंदगी में भी वे टूटकर प्यार करते हैं, वक़्त की आंच-गर्मी से उनके प्यार का रंग कभी फीका नहीं पड़ता | 1856 में 38 वर्षीय कार्ल मार्क्स ने 42 वर्षीय जेनी को, जो कई बच्चों की माँ हो चुकी थीं, एक प्रेमपत्र लिखा था | *इस लंबे पत्र में जेनी के प्रति उन्होने वही कोमल और उत्कट प्रेम प्रकट किया है जैसा वह छात्र-जीवन में महसूस करते थे|* इस पत्र का एक अंश यहाँ प्रस्तुत है : "मेरी प्रियतमा, "मैं तुम्हें फिर लिख रहा हूँ , इसलिए कि मैं अकेला हूँ और इसलिए कि मेरे मन में हमेशा तुम्हारे साथ बातचीत करना मुझे परेशान किए दे रहा है , जबकि तुम इसके बारे में न कुछ जानती हो , न कुछ सुनती हो और न ही मुझे उत्तर दे सकती हो ... मैं तुम्हें अपने सामने साक्षात देखता हूँ , मैं तुम्हें अपनी गोद में उठा लेता हूँ , मैं तुम्हें सिर से पाँव तक चूमता हूँ , मैं तुम्हारे सामने घुटने टेक देत

एनपीए कैसे कम होता है?

युवा सोच   जनता की खून पसीने की कमाई का पैसा पूंजीपतियों को लूटा कर भारती शिपयार्ड (जी हाँ, भारती एयरटेल वालों की ही है, ऐसे बड़े नामों वाले केस बहुत हैं, माल्या तो छोटा ही है!) का 10 हज़ार करोड़ का कर्ज NPA हुआ| बैंक कैसे वसूल करते? अब यह कर्ज 3 हज़ार करोड़ में एडेलवीस को बेच दिया गया जिसे शुरू में सिर्फ 450 करोड़ देने हैं, बाकी किश्तों में| कंपनी का नाम बदल दिया गया है और 7 हजार करोड़ सर से उतरे तो दौड़ेगी भी! कम्पनी की क़ीमत बढ़ेगी, दाँव लगाने वाले वित्तीय पूँजीपति तगड़ा मुनाफा कमायेंगे|  और बैंक का 7 हज़ार करोड़ का बट्टे खाते में जाने वाला नुकसान ? वह हम देंगे, बढ़ते बैंक चार्ज, घटते डिपाजिट ब्याज़ से सिर्फ बैंक ग्राहक ही नहीं, बल्कि बैंक में जमा करने लायक कमाई न करने वाले भी क्योंकि सरकार बैंक को और पूँजी देगी| तो और टैक्स दें, बढे रेल भाड़े दें, बढ़ी कीमतें दें, 'राष्ट्रवादी' बनें!  पर 10 हज़ार करोड़ एनपीए तो कम हो गया ना, मितरों! By : Kundan Singh Kanishk.....

रोबोट नहीं बल्कि पूँजीवाद छीन रहा है हमारी नौकरियाँ!

युवा सोच रोबोट नहीं बल्कि पूँजीवाद छीन रहा है हमारी नौकरियाँ! 🖊By Kundan singh kanishk जैसे-जैसे छँटनी और बेरोज़गारी के काले बादल भारत के आईटी सेक्‍टर व अर्थव्‍यवस्‍था के अन्‍य सेक्‍टरों पर मंडराते जा रहे हैं, वैसे-वैसे शासक वर्ग के लग्‍गू-भग्‍गू बुद्धिजीवी हमें यह समझाने में अपनी पूरी बौद्धिक ऊर्जा झोंक रहे हैं कि ऐसी गंभीर परिस्थिति के लिए मुख्‍य रूप से रोबोट और आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस की प्रौद्योगिकी जिम्‍मेदार हैं। इसमें दो राय नहीं है कि artificial cognition, machine learning, internet of things, data driven decision-making, intelligent transportation systems जैसी तकनीकों में हाल में हुई पथप्रदर्शक खोजों में उत्‍पादन की प्रक्रिया में रूपांतरण की संभावना निहित है *जिसके परिणामस्‍वरूप बड़ी संख्‍या में लोग उत्‍पादन व्‍यवस्‍था से बाहर हो जाएंगे क्‍योंकि उनके कौशल की अब कोई ज़रूरत नहीं रह जाएगी।* परन्‍तु यथार्थ के इस पहलू पर ज़ोर देते समय अक्‍सर यह सच्‍चाई पर्दे के पीछे छिपा दी जाती है कि ऐसा केवल पूँजीवादी उत्‍पादन संबंधों के तहत होता है कि ऑटोमेशन की वजह से लोगों की आजीविक

राजनीति

जो गंदी राजनीति करते थे धर्म जाति देश के नाम पर उन सबकी दुकाने मोदी जी ने बंद कर दी इसलिये सभी जलते है उनसे . पर जनता तो #मोदी जी के साथ है

एक अपील....

युवा सोच एक निवेदन प्रिय मुख्यमंत्री जी, बिहार में छात्र पढाई करते हैं और सरकारी जॉब पाने के लिए रात-दिन एक कर मेहनत करते हैं लेकिन जब परीक्षा होता हैं और रिजल्ट में उनका नाम नहीं होता तो उन्हें बहुत दुःख होता हैं. घरवाले भी कहते हैं बेटा और मेहनत करो…लेकिन छात्र यह समझ में नहीं पाते कि एक क्लर्क के लिए और कितना मेहनत करने की जरुरत हैं. एक क्लर्क की तैयारी करने वाले के पास आईएएस की नॉलेज हो जाती हैं लेकिन उसका क्लर्क में नहीं होता हैं और उसका सबसे बड़ा कारण परीक्षाओं में चल रही धांधली हैं. कुछ छात्र तो हार कर, पढाई छोड़ सेटिंग कराने के लिए पैसे के जुगाड़ में लग जाते हैं. मतलब सेटिंग तो पक्का हो जाता हैं अगर पैसा हैं तो. जिसके पास पैसा नहीं या सेटिंग से नहीं चाहता वह कोचिंग टियुशन पढ़ाने लग जाता हैं. मतलब साफ़ हैं मुख्यमंत्री जी सेटिंग की जड़ गाँव-गाँव तक पहुँच चुकी हैं और सबसे ऊपर तक के लोग भी इसमें शामिल हैं. मैं नहीं जानता सत्ता के लोग इसमें जुड़े हैं की नहीं लेकिन जरुर जुड़े होंगे क्योंकि सत्ता तो अब आई हैं धंधा में तो पहले से होंगे. बिहार के छात्रों का भविष्य हर विभाग में