युवा सोच कार्ल मार्क्स का पत्र - अपनी जीवनसाथी जेनी के नाम जो ज़िंदगी और अपने लक्ष्य के प्रति सच्चे और एकनिष्ठ होते हैं , जिनका जीवन मानव-मुक्ति के मार्ग-संधान और परियोजना को सच्चे अर्थों में समर्पित होता है , निजी ज़िंदगी में भी वे टूटकर प्यार करते हैं, वक़्त की आंच-गर्मी से उनके प्यार का रंग कभी फीका नहीं पड़ता | 1856 में 38 वर्षीय कार्ल मार्क्स ने 42 वर्षीय जेनी को, जो कई बच्चों की माँ हो चुकी थीं, एक प्रेमपत्र लिखा था | *इस लंबे पत्र में जेनी के प्रति उन्होने वही कोमल और उत्कट प्रेम प्रकट किया है जैसा वह छात्र-जीवन में महसूस करते थे|* इस पत्र का एक अंश यहाँ प्रस्तुत है : "मेरी प्रियतमा, "मैं तुम्हें फिर लिख रहा हूँ , इसलिए कि मैं अकेला हूँ और इसलिए कि मेरे मन में हमेशा तुम्हारे साथ बातचीत करना मुझे परेशान किए दे रहा है , जबकि तुम इसके बारे में न कुछ जानती हो , न कुछ सुनती हो और न ही मुझे उत्तर दे सकती हो ... मैं तुम्हें अपने सामने साक्षात देखता हूँ , मैं तुम्हें अपनी गोद में उठा लेता हूँ , मैं तुम्हें सिर से पाँव तक चूमता हूँ , मैं तुम्हारे सामने घुटने टेक देत